संस्कृत में संख्यावाचक शब्द के प्रयोग

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संस्कृत में शून्य से महाशंख तक की गणना (गिनती) इस प्रकार है-

0          शून्यम् - शून्य

1          एकः (पुल्लिंग), एका (स्त्रीलिंग) एकम् (नपुंसकलिंग)- एक

2          द्वौ, द्वे, द्वे- दो

3          त्रयः,तिस्रः,त्रीणि- तीन

4          चत्वारः, चतस्रः, चत्वारि - चार

5          पञ्च - पाँच

6          षट् - छः / छ

7          सप्त - सात

8          अष्ट - आठ

9          नव - नौ

10        दश- दस

11        एकादश -ग्यारह

12        द्वादश - बारह

13        त्रयोदश - तेरह

14        चतुर्दश -- चौदह

15        पंचदश - पन्द्रह

16        षोडश -सोलह

17        सप्तदश - सत्रह

18        अष्टादश -अठारह

19        नवदश/ऊनविंशतिः/एकोनविंशतिः-उन्नीस

20        विंशतिः- बीस

21        एकविंशतिः इक्कीस

22        द्वाविंशतिः- बाइस

23        त्रयोविंशतिः - तेइस

24        चतुर्विंशतिः चौबीस

25        पञ्चविंशतिः - पचीस

26        षड्विंशतिः - छब्बीस

27        सप्तविंशतिः - सत्ताईस

28        अष्टाविंशतिः -- अट्ठाईस

29        उनतीस - नवविंशतिः, ऊनत्रिंशत् एकोनत्रिंशत्

30        त्रिंशत् -तीस

31        एकत्रिंशत् इकतीस 

32        द्वात्रिंशत् -बत्तीस

33        त्रयस्त्रिंशत्-तैंतीस

34        चतुस्त्रिंशत्- चौंतीस

35        पञ्चत्रिंशत् पैंतीस

36        षट्त्रिंशत् - छत्तीस

37        सप्तत्रिंशत् - सैंतीस

38        अष्टात्रिंशत् - अड़तीस

39        ऊनचत्वारिंशत् या नवत्रिंशत् या एकोनचत्वारिंशत्- उनतालीस

40        चत्वारिंशत् चालीस

41        एकचत्वारिंशत् - एकतालीस

42        द्वाचत्वारिंशत् या द्विचत्वारिंशत्-बयालीस

43        त्रिचत्वारिंशत्-तैंतालीस

44        चतुश्चत्वारिशत्- चौतालीस

45        पञ्चचत्वारिंशत् पैंतालीस

46        षट्चत्वारिंशत्-छियालीस

47        सप्तचत्वारिंशत्-सैंतालीस

48        अष्टाचत्वाशित्-अड़तालीस

49        नवचत्वारिंशत्; ऊनपञ्चाशत् या एकोनपञ्चाशत्-उनचास

50        पञ्चाशत्-पचास

51        एकपञ्चाशत्-इक्यावन

52        द्वापञ्चाशत् (द्विपञ्चाशत्)- बावन

53        त्रयः पञ्चाशत् (त्रिपञ्चाशत् )- तिरपन

54        चतुःपञ्चाशत्-चौवन

55        पञ्चपञ्चाशत्-पचपन

56        षट्पञ्चाशत्-छप्पन

57        सप्तपञ्चाशत्-सत्तावन

58        अष्टपञ्चाशत् (अष्टापञ्चाशत् ) अठावन

59        नवपञ्चाशत्, ऊनषष्टिः या एकोनषष्टिः - उनसठ

60        षष्टिः - साठ

61        एकषष्टिः इकसठ

62        द्वाषष्टिः (द्विषष्टिः) - बासठ

63        त्रयःषष्टिः (त्रिषष्टिः) - तिरसठ

64        चतुष्षष्टिः- चौंसठ

65        पञ्चषष्टिः-पैंसठ

66        षट्षष्टिः छियासठ

67        सप्तषष्टिः- सड़सठ

68        अष्टाषष्टिः (अष्टषष्टिः ) अड़सठ

69        नवषष्टिः, ऊनसप्ततिः या एकोनसप्ततिः उनहत्तर

70        सप्ततिः-सत्तर

71        एकसप्ततिः - इकहत्तर

72        द्वासप्ततिः (द्विसप्ततिः) - बहत्तर

73        त्रयस्सप्ततिः (त्रिसप्ततिः) - तेहत्तर

74        चतुस्सप्ततिः-चौहत्तर

75        पंचसप्ततिः - पचहत्तर

76        षट्सप्ततिः- छिहत्तर

77        सप्तसप्ततिः - सतहत्तर

78        अष्टासप्ततिः ( अष्टसप्ततिः) - अठहत्तर

79        नवसप्ततिः, ऊनाशीतिः या एकोनाशीतिः -उनासी

80        अशीतिः - अस्सी

81        एकाशीतिः - इकासी

82        द्वयशीतिः- बेरासी

83        त्र्यशीतिः-तेरासी

84        चतुरशीतिः-चौरासी

85        पंचाशीतिः पचासी

86        पडशीतिः-छियासी

87        सप्ताशीतिः सतासी

88        अष्टाशीतिः - अठासी

89        ऊननवतिः या एकोननवतिः या नवाशीतिः-नवासी

90        नवतिः- नब्बे

91        एकनवतिः - इकानबे

92        बानबे- द्वानवतिः (द्विनवतिः)

93        त्रयोनवतिः (त्रिनवतिः) - तेरानबे

94        चतुर्णवतिः- चौरानबे

95        पञ्चनवतिः - पञ्चानबे

96        पण्णवनतिः छियानबे

97        सप्तनवतिः - संतानबे

98        अष्टनवतिः या अष्टानवत्ति-अंठानबे

99        नवनवतिः (ऊनशतम् या एकोनशतम्) - निन्यानवे

100     शतम् - सौ

1000   सहस्रम्-हजार

10000 अयुतम्-दस हजार

100000     लक्षम्-लाख

1000000    अयुतम् या नियुतम्-दस लाख

10000000    कोटि:- करोड़

                      आकोटि:-दस करोड़

                      अर्बुदम्-अरब

                       बृन्दः - दस अरब

                       खर्वः-खरब

                      शंकु :- नील

                      आशंकु :-दस नील

                        पद्म:- पद्म

                        सागर :- दस पद्म

                        अन्त्यम्-शङ्ख

                        मध्यम्-दस शङ्ख

                        परार्धम्-महाशङ्ख

संख्या बनाने की विधि

'शतम्' के आगे बड़ी संख्या बनाने के लिए, लघु संख्या वाचक शब्द के बाद "अधिक" या "उत्तर" शब्द लगा दिया जाता है। जैसेः  - "एक सौ तेरह बालक खेल रहे हैं" । यहां "त्रयोदश" लघु संख्या है । इसके आगे "अधिक" लगाकर इसके बाद "शतं" यह वृहत्तर संख्या लगाने से एक सौ तेरह की संस्कृत शब्द बना लिया जाता है। त्रयोदशाधिकशतम्" । इसलिए इस वाक्य का अनुवाद हुआ "त्रयोदशाधिकशतं बालकाः क्रीडन्तिअथवा 'बालकानां त्रयोदशाधिकशतं क्रीडति' । इसी तरह 100000–“एकाधिकं लक्षम्" । 2012 - "द्वादशाधिकं द्विसहस्रम्। चाहे संख्या कितनी बड़ी भी क्यों न हो उसका इसी तरह अनुवाद किया जा सकता है।

संस्कृत में आधा को अर्ध तथा चौथाई को पाद कहते है। शत, सहस्र इत्यादि संख्याओं के साथ आधी संख्या (50, 500 आदि) साथ हो तो स + अर्ध सार्द्ध”, चौथाई साथ हो ( 25, 250 आदि ) तो "सपादं" और चौथाई कम हो तो "पादोन" शब्द का उनके साथ प्रयोग किया जाता है। जैसेः मैंने महाभारत के 450 श्लोक पढ़े हैं"; "महाभारतस्थ श्लोकानां सार्द्ध-शत-चतुष्टयम् अपठम्" । "वह 125 आम लाया"; "स संपादशतम् आम्राणि आनीतवान्" । "इस पुस्तक का मूल्य सवा रुपया है"; "अस्य पुस्तकस्य मूल्यं सपाद-रौप्यमुद्रा१७५० पुस्तक थीं": "पुस्तकानां पादोन-सहस्रद्वयमासीत्। 

संख्याओं का वचन निर्धारण
1  1.    एक शब्द नित्य एकवचनान्त होते हैं। यह तीनों लिंगों में प्रयुक्त होता है ।
परन्तु जब इसका संख्या के अतिरिक्त अन्य अर्थ में प्रयोग होता है, तब इसका द्विवचन तथा बहुवचन रूप भी होता है,क्योंकि एक शब्द के कई अर्थ होते हैं।
     एकोऽन्यार्थे प्रधाने च प्रथमे केवले तथा।
    साधारणे समानेऽल्पे संख्यायाञ्च प्रयुज्यते।।

 तीनों लिंगों में एक शब्द का रूप

विभक्ति            पुल्लिंग             स्त्रीलिंग             नपुंसकलिंग

प्रथमा             एकः                 एका                 एकम्

द्वितीया          एकम्               एकाम्              एकम्

तृतीया            एकेन                 एकया             एकेन

चतुर्थी             एकस्मै               एकस्यै            एकस्मै

पञ्चमी             एकस्मात्           एकस्या:           एकस्मात्

षष्ठी                एकस्य              एकस्या:             एकस्य

सप्तमी             एकस्मिन्           एकस्याम्          एकस्मिन्



 














      2.द्वि शब्द नित्य द्विवचनान्त होते हैं। इसका एकवचन तथा बहुवचन नहीं होता है। यह तीनों लिंगों में प्रयुक्त होता है । इसका रूप देखें-
3. विभक्ति             पुल्लिंग              स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग

( द्विवचन )         ( द्विवचन )

प्रथमा              द्वौ                     द्वे

द्वितीया           द्वौ                     द्वे

तृतीया             द्वाभ्याम्             द्वाभ्याम्

चतुर्थी              द्वाभ्याम्             द्वाभ्याम्

पञ्चमी             द्वाभ्याम्             द्वाभ्याम्

षष्ठी                द्वयोः                 द्वयोः

सप्तमी              द्वयोः                 द्वयोः



    















     3. त्रि (3) से लेकर अष्टादशन् (18) संख्यावाची शब्द बहुवचनान्त होते हैं। यह तीनों लिंगों में प्रयुक्त होता है । 
    यहाँ त्रि तथा शब्द का तीनों लिंग में रूप दिया जा रहा है-
     

विभक्ति

पुल्लिंग बहुवचन

स्त्रीलिंग बहुवचन

नपुंसकलिंग बहुवचन

प्रथमा

त्रयः

तिस्रः

त्रीणि

द्वितीया

त्रीन्

तिस्रः

त्रीणि

तृतीया

त्रिभिः

तिसृभिः

त्रिभिः

चतुर्थी

त्रिभ्यः

तिसृभ्यः

त्रिभ्यः

पञ्चमी

त्रिभ्यः

तिसृभ्यः

त्रिभ्यः

षष्ठी

त्रयाणाम्

तिसृणाम्

त्रयाणाम्

सप्तमी

त्रिषु

तिसृषु

त्रिषु


चतुर् शब्द का तीनों लिंग में रूप 

       

विभक्ति

पुल्लिंग बहुवचन

स्त्रीलिंग बहुवचन

नपुंसकलिंग बहुवचन

प्रथमा

चत्वारः

चतस्रः

चत्वारि

द्वितीया

चतुरः

चतस्रः

चत्वारि

तृतीया

चतुभिः

चतसृभिः

चतुर्भिः

चतुर्थी

चतुर्भ्यः

चतसृभ्यः

चतुर्भ्यः

पञ्चमी

चतुर्भ्यः

चतसृभ्यः

चतुर्भ्य:

षष्ठी

चतुर्णाम्

चतसृणाम्

चतुर्णाम्

सप्तमी

चतुर्षु

चतसृषु

चतुर्षु

पञ्चन् (पाँच)षट् (छः)सप्त (सात)शब्द केवल बहुवचन में प्रयुक्त इनके रूप तीनों लिंगों में समान ही होते हैं।

संख्याओं का विशेषण और विशेष्य निर्धारण

1.      अष्टादशभ्य एकाद्याः संख्या संख्येय गोचराः ।
          विशत्याद्याः सदैकत्वे सर्वाः संख्येयसंख्ययोः। 
1 से 18 तक की संख्या केवल विशेषण के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। 20 से लेकर आगे की संख्या विशेषण और विशेष्य दोनों में प्रयुक्त होते हैं।
 विशेषण के रूप का उदाहरण-  यथा एकः पुरुषः, दश बालकाः।
विशेषण और विशेष्य रूप का उदाहरण- एकविंशतिः ग्रामाः, ग्रामाणामेकविंशतिः।
2. दो या तीन, तीन या चार, चार या पाँच, इसी प्रकार संशययुक्त दो संख्यार्थी के होने पर उन दोनों का समास करके एक शब्द बना लेते हैं। ऐसी अवस्था में उक्त शब्द को बहुवचनान्त विशेषण रूप में प्रयुक्त करते हैं। यथाः- अत्र चितुरा बालका: क्रीडन्ति"।
3. शत, सहस्र इत्यादि के पहले द्वि, त्रि आदि के आने पर 'समाहार द्विगु' हो जाने से वे विशेषण नहीं रहते, क्योंकि समाहार द्विगु हो जाने पर वे विशेष्य पद हो जाते हैं। जैसे: "बालकानां द्विशती, त्रिशती, पञ्चशती वा याति"पण्डितानां पञ्चशती अत्र तिष्ठति"राम को दो सहस्र वानरों को सेना थी"; "रामस्य वानरसैन्यानां द्विसहस्री आसीत्। "तस्य पुस्तकानां त्रिशती अस्ति" ।

संख्याओं का लिंग निर्धारण

1. 1 से अष्टादशन् पर्यन्त संख्या तीनों लिंग में प्रयुक्त होती है तथा उनविंशतिः (19) से नवनवति (99)तक की संख्या स्त्रीलिंग होती है।
 'पञ्चन्' शब्द के समान ही अष्टन् (आठ), नवन् (नौ), दशन् (दस), एकादशन् (ग्यारह), द्वादशन् (बारह), त्रयोदशन् (तेरह), चतुर्दशन् (चौदह,) पञ्चदशन् (पन्द्रह), षोडशन् (सोलह), सप्तदशन् (सत्रह), अष्टादशन् (अठारह) और नवदशन् (उन्नीस) शब्दों के रूप हैं। इनके रूप भी तीनों लिंगों में एक जैसे ही होते हैं । अष्टन् के एक विशेष प्रकार के रूप भी होते हैं ।

ऊनविंशति (उन्नीस), विंशति, नवविंशति (बीस से उनतीस)  शब्द स्त्रीलिंग हैं। इनके रूप केवल एकवचन में इकारान्त स्त्रीलिंग 'मति' शब्द के समान ही होते हैं ।

शत् में अन्त होनेवाले त्रिंशत् (तीस), चत्वारिंशत् (चालीस), पञ्चाशत् (पचास) आदि शब्दों के रूप केवल एकवचन में स्त्रीलिंग 'सरित्' शब्द के समान चलते हैं। पष्टि (साठ), सप्तति (सत्तर), अशीति (अस्सी), नवति (नब्बे) इत्यादि शब्दों के रूप केवल एकवचन में इकारान्त स्त्रीलिंग 'मति' शब्द के समान होते हैं ।

शत (सौ), सहस्र (हजार), अयुत (दस हजार), लक्ष (लाख), प्रयुक्त या नियुत (दस लाख), अर्बुद (अरब), पद्म, महापद्म, अन्त्य (शंख), मध्य (दश शंख) और परा (महाशंख) शब्द नपुंसकलिंग है। इनके रूप 'फल' शब्द जैसे तीनों वचनों में मिलते हैं ।

कोटि (करोड़) और आकोटि (दश करोड़) स्त्रीलिंग शब्दों के रूप तीनों वचनों में 'मति' शब्द के समान चलते हैं। वृन्द (दस अरब), खर्व (खरब), निखर्व (दश खरब) पद्म और सागर (दश पद्म) पुल्लिंग शब्दों के रूप तीनों वचनों में 'देव' शब्द की तरह चलते हैं।

उकारान्त पुंल्लिग शङ्कु (नील) और आशङ्कु शब्दों के रूप सभी वचनों में 'साधु' शब्द की तरह चलेंगे । 

संख्या के अर्थ में संख्याओं के प्रयोग में लिंग निर्धारण

6. जब विंशति आदि संख्या का प्रयोग संख्या के लिए किया जाता है तब उसमें द्विवचन और बहुवचन भी होते हैं। यथा- द्वे विंशती ( दो बीस अर्थात् 40 ) यहाँ द्वे द्विवचन तथा विंशती द्विवचन का रूप है।

संख्याओं का शब्द रूप

7. द्विवचनान्त द्वि शब्द
पुल्लिंग-                     द्वौ   द्वाभ्यां   द्वयोः
स्त्रीलिंग एवं नपुंसक -    द्वे    द्वाभ्यां   द्वयोः
8. बहुवचनान्त त्रि शब्द
पुल्लिंग-            त्रयः  त्रीन्   त्रिभिः    त्रिभ्यः   त्रयाणाम्  त्रिषु
स्त्रीलिंग -          तिस्रः  तिसृभिः  तिसृभ्यः  तिसृणाम् तिसृसु
नपुंसक -         त्रीणि  त्रिभिः  त्रिभ्यः   त्रयाणाम्  त्रिषु
9. पञ्चन् से अष्टादशन् तक तीनों लिंगों में समान रूप होते हैं। शेष संख्याओं का शब्द रूप देखें।

संख्याओं का लिंग परिवर्तन 

10. प्रथमः द्वितीयः तृतीयः में आ (टाप् ) प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंग रूप बनाते हैं। यथा- प्रथमा द्वितीया आदि।

पूरणार्थक संख्यावाचक शब्द
11. पञ्चमः षष्ठः में ई  (ङीप्) लगाकर पञ्चमी षष्ठी आदि पूरणार्थक शब्द बनाते हैं।
12. विंशतिः से आगे तमप् लगाकर विंशतितमः पूरणार्थक शब्द बनाते हैं।
13. द्वि त्रि शब्दों के आगे तीय" चतुर् और पष् के आगे थुक्" पश्चन् से दशन तक शब्दों के आगे "म" एकादशन् से अष्टादशन् तक शब्दों के आगे "डट्" और विंशति से आगे की सब संख्याओं के आगे तम" प्रत्यय लगाया जाता है।

जैसे: बीते हुए पांचवें वर्ष में वह यहां आया था " विगते पञ्चमे वर्षे सोऽत्र आगतवान्" । इस श्रेणी में वह पाँचवाँ है, अस्यां श्रेण्यां स पञ्चमः। वह बालिका श्रेणी में ७ वीं है- " बालिकेयं अस्यां श्रेयां सप्तमी" । " आपका १५वीं तारीख का पत्र आया है-तव पश्चदश-दिवसीयं पत्रं मया प्राप्तम्" ।यह महाभारत के 157 वें अध्याय में कहा गया है—“एतद्धि महाभारतस्य सप्तपश्चाशदधिकशततमे अध्याये वर्णितम्" । आगामी 28 अगस्त को दुर्गा पूजा होगी आगामिनि अष्टाविंशतितमे अगस्ते दुर्गापूजा भविष्यति । 


उदाहरण-

प्रथमः बालकः जितेन्द्रः अस्ति।

द्वितीयः बालकः गणेशः अस्ति।

तृतीयः बालकः सत्यवतः अस्ति।

तिस्रः बालिकाः पठन्ति ।

अध्यापक: त्रीणि त्रीणि मोदकानि यच्छति ।

राज्ञः त्रीणि कलत्राणि आसन् । 

रमेशाय चत्वारि मोदकानि यच्छति

एतानि मोदकानि द्वाभ्यां छात्राभ्यां सन्ति।

अयं पष्ठः वर्गः  अस्ति । 

अभ्यास-

अधोलिखित रिक्त स्थान में लिंग तथा वचन को ध्यान में रखकर संख्यावाचक शब्द भरें।

(क) (एक)....  नदी ।

(ख) (द्वि)... बालकौ ।

(गं) (त्रि).... .. बालिकाः ।

(घ) (त्रि)...   बालकेषु ।

(ङ) (चतुर्)   बालकानाम् ।

(च) (चतुर्)... बालिकासु ।

अनिश्चित संख्या को व्यक्त करना

14. दो या तीन, तीन या चार, चार या पाँच इस प्रकार अनिश्चित संख्या को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त संख्याओं के संस्कृत शब्दों को मिलाकर पिछले शब्द को अकारान्त हो जाता है । उसके आगे विशेष्य के अनुसार विभक्ति और वचन आयेंगे। जैसे - "यहां तीन चार बालक हैं"; "अत्र त्रिचतुरा बालकाः सन्ति । "वह पाँच छः दिन में यह काम करेगा "; "स पञ्चषैः दिनैः कार्यमेतत् करिष्यति" । "मैं सात-आठ दिन ठहरकर घर जाऊँगा", "सप्ताष्टानि दिनानि स्थित्वा आलयं गमिष्यामि" । "उसने दो-तीन महीने में व्याकरण पढ़ा है", "स द्वित्रैः मासैः व्याकरणमधीतवान्" । " उसने अपने पुत्र को प्यार से दो-तीन फल दिये"; "स द्वित्राणि फलानि सस्नेहं पुत्राय दत्तवान्" । 

'बारअर्थ में संख्या का प्रयोग

14. 'बार' अर्थ में द्वि, त्रि, चतुर् शब्द के आगे सुच्" प्रत्यय लगाने से "द्विःत्रिःऔर चतुः" यह रूप बनता है। एक, द्वि, चतुर् और अन्यान्य संख्यावाचक शब्दों से 'प्रकार' प्रकार अर्थ में धाच्" प्रत्यय होता है।

जैसे– “स मासस्य (मासे वा) द्विः त्रिर्वा अधीते । सहस्रधा विदीर्णं तस्य हृदयम्" ।

अवयव दिखाने में संख्या का प्रयोग

15. अवयव दिखाने के लिए द्वय, त्र्य, चतुष्टय और पञ्चक, षट्क, सप्तक,अष्टक इत्यादि '' प्रत्ययान्त एकवचनान्त नपुंसकलिङ्ग शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जैसे:- बालकद्वयं क्रीडति "। द्वौ बालकौ क्रीडतः"। क प्रत्यय के विना द्वय, त्र्य, चतुष्टय का भी प्रयोग हो सकता है। ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रयोग में क्रिया और विशेषण एकवचनान्त होंगे। पूर्व नियमों के अनुसार वाक्यों का अनुवाद किया जाता है । भगवान् की तीन मूर्ति सुन्दर हैं- "भगवतः मूर्तित्रयं (मूर्तित्रयी वा) सुन्दरं (सुन्दरी वा) अस्ति। मेरा वेतन 400 रूपये प्रतिदिन है- "वृत्तिर्मे प्रत्यहं रुप्यक-शतचतुष्टयम् अस्ति" मैं 6 महीने में आपके पुत्रों को नीतिज्ञ बना दूँगा- "अहं मास-षट्केन भवतः पुत्रान् नीतिज्ञान् करिष्यामि। आजकल साढ़े पांच रुपये में रामायण और साढ़े छः रूपये में महाभारत आ जाती है - " साम्प्रतं सार्द्धमुद्रा पञ्चकेन रामायणं सार्धमुद्रा-षट्केन च महाभारतं लभ्यते । 

परिमाण सूचित करने के लिए संख्या वाचक शब्द

16. आयु का परिमाण सूचित करने के लिए संख्या वाचक शब्द के आगे वर्षीय, वार्षिक, वर्षीण और वर्ष प्रयुक्त होता है। जैसेः –"हरि सोलह वर्ष की अवस्था में वृन्दावन गया था” – “षोडशवर्षीयः (वार्षिक:, वर्षीणः, - वर्षः वा ) हरिः वृन्दावनं गतवान्"२ वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण ने पूतना राक्षसी को मारा था – “द्विवर्षीयः (वार्षिकः, वर्षीणः, वर्षः वा) श्रीकृष्णः - पूतनाराक्षसीं जघान। वह ७० वर्ष की उम्र में मरा” – “सप्तति-वार्षिकः स प्राणान् तत्याज"मुझ अस्सी वर्ष की उम्र वाले को धन की क्या आवश्यकता" "अशीतिवर्षस्य मम न किश्चित् अर्थेन प्रयोजनम्। 

लगभग अर्थ में संख्या वाचक शब्द का प्रयोग

17. "लगभग दो वर्ष का" "लगभग तीन वर्ष का" इस प्रकार के वाक्यों के लिए "वर्षदेशीयः" पद संख्या के बाद लगाया जाता है । जैसेः - "लगभग 7 वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था" सप्तवर्षदेशीयः श्रीकृष्णः गोवर्धन पर्वतं दधार" । "हरि की आयु लगभग ३ वर्ष की है" त्रिवर्षदेशीयः हरिः अस्ति "वह लगभग 80 वर्ष की आयु में बनारस गया"। "अशीतिवर्षदेशीयः स वाराणसीं गतः" ।

18. संख्यावाचक शब्द प्रयोग करने में यदि संशय हो तो अनेक स्थलों में संख्यावाचक शब्द के साथ संख्यक" शब्द लगा कर, अकारान्त शब्द की तरह रूप करके सरलता से अनुवाद किया जा सकता है । यथाः – “धृतराष्ट्रस्य शतसंख्यकाः पुत्राः"। "पाण्डोः पञ्चसंख्यकाः पुत्राः"। विंशतिसंख्यकानि स्वादूनि फलानि" ।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. उन्नीस सौ तैंतालीस को संस्कृत में शब्दों में कैसे लिखेंगे

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    1. सप्तचत्वारिंशाधिकोनविंशतिसहस्रम्। सप्तचत्वारिंशत् अधिक-उनविंशतिसहस्रम्।

      हटाएं
  2. त्रिचत्वारिंत्-अधिक-एकोनविंशतिशतम्

    जवाब देंहटाएं

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