संस्कृत की पत्रिकायें और हम

561, 2nd Ramachandra Agrahara, MYSORE-570 004 Karnataka से प्रकाशित होने वाली  सुधर्मा आज चर्चा में है। चर्चा इसलिए कि अब यह बंद होने की स्थिति में आ गयी। यह पहला मौका नहीं है कि इस दैनिक संस्कृत समाचार पत्र के बंद होने की खबर आयी हो। पहले भी अनेक बार इस प्रकार की खबर आती रही है। संस्कृत जगत् में सुधर्मा ही वह पत्रिका नहीं है, जिसके बंद होने का समाचार हमें दुखी किया हो। अनेक पत्रिका आर्थिक तथा अन्य कारणों से बंद हो चुकीं है। हम एक समय तक सिर्फ दुखी होते हैं, फिर भूल जाते हैं। पत्रिकाओं को इस प्रकार की स्थितियों से बचाने के लिए संगठित होकर कोई कार्ययोजना नहीं बनाते। असंगठित समूह का आवेग क्षणिक होता है और यह निर्णायक स्थिति तक पहुँचने में असमर्थ होता है। ये बंद होने के कारणों तथा कारकतत्वों से न तो अवगत होते हैं न हीं कराने में सक्षम होते हैं। सुधर्मा के सम्पादक श्री के.बी.सम्पत् कुमार ने संस्कृत पत्रकार संगोष्ठी के आमंत्रण पर चर्चा करते हुए मुझसे कहा कि मुझे पत्रिका में विज्ञापन की आवश्यकता है। यदि विज्ञापन मिलता रहे तो हमें इसे चलाने में मदद मिलेगी। संस्कृत के सेवा क्षेत्र से जुडे लोग जानते हैं कि उनकी संस्था वर्ष भर में कितने धनराशि का विज्ञापन देती हैं, उसमें संस्कृत समाचार पत्रों की हिस्सेदारी कितना प्रतिशत है। 
         किसी पत्र- पत्रिका के प्रकाशन में आर्थिक भूमिका के साथ -साथ उसका समय से प्रकाशन और वितरण भी का भी स्थान है। पर्याप्त मानव संसाधन के विना पत्रिका हेतु अच्छे लेख का संकलन, अक्षर संयोजन, चित्र संयोजन, मुद्रण और पाठकों से पत्रोत्तर कर ग्राहक संख्या बढाना संभव नहीं।        क्या हम किसी पत्रिका को खरीद कर सम्पादक का मनोबल बढाते हैं? क्या हम कुछ मित्रों के साथ मिलकर उनके लिए ग्राहक जुटा पाते हैं? क्या हम पत्रिका के लिए उपयोगी सुझाव देते हैं? हमारा एक छोटा सा प्रयास संस्कृत पत्रकारिता के लिए संजीवनी का काम करेगा। एक व्यक्ति अपने विवेक और उत्साह के साथ इस अलाभकारी कार्य में प्रवृत्त होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार संस्कृत को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रयत्नशील रहता है। जब वह थक जाये तब? जब वह अस्वस्थ रहने लगे तबयहाँ बस इतना ही कि जिनके सामर्थ्य में विज्ञापन देना है वे विज्ञापन दें। जो खरीद सकते हैं ग्राहक बनें। दो चार मित्रों को जोडकर संगठित कार्य करें। अनुभवी विद्वानों से प्रेरणा व ऊर्जा लें। संस्कृत के लिए काम करना अपनी आदत बना लें। मैंने अपने ब्लाग के इस लिंक पर http://sanskritbhasi.blogspot.in/2015/08/blog-post_20.html अनेक संस्कृत की पत्र पत्रिकाओं के नाम, पते,ईमेल,बेवसाइट,फोन नं. आवधिकता आदि का विवरण उपलब्ध कराया है। आप सम्पादक/प्रकाशक से सम्पर्क कर इसकी सदस्यता ले सकते हैं। सुधर्मा पत्रिका मंगवाने का विवरण इस प्रकार है-

Annual Subscription for Sudharma Sanskrit Daily Rs. 400/- p.a. (inclusive of postage)
For Online transfer:
State Bank of India
New Sayyaji Rao road branch
Name of account: Sudharma Samskrutha Daily
IFSC: sbin0003130
Account number: 32017153837
Pls. send D.D./M.O. only in favor of
Sudharma Sanskrit Daily
# 561, 2nd Ramachandra Agrahara
Mysore-570 004 Karnataka
Pls. send your detailed address and telephone no. for communication
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